शनिवार, 3 मई 2014

तुलसीदास का साहित्यिक परिचय शालिनी मिश्रा,शोधर्थिनी (हिंदी विभाग )कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल

तुलसीदास का साहित्यिक परिचय-(शालिनी मिश्रा )
तुलसी द्वारा विरचित अनेक ग्रन्थ विविध सूत्रों से उपलब्ध हुए है | गियर्सन द्वारा स्थापित सूची सभी आलोचकों द्वारा स्वीकार कर ली गयी है , इसमें छह छोटे व छह बड़े ग्रन्थ है |जिसमे रामचरितमानस,जिसे हिंदी रामायण भी कहते है उनका सबसे
किया है | 13
बड़े ग्रन्थ विशिष्ठ ग्रन्थ है | इसे चौपाई में रचने के कारण कभी-कभी चौपाई रामायण भी खा जाता है | 12
                आचार्य शुक्ल ने अपने इतिहास में इनके छह छोटे व छह बड़े ग्रंथों का उल्लेख – दोहावली , कवित्त रामयाण , गीतावली , रामचरितमानस , व विनयपत्रिका |
छोटे ग्रन्थ – रामललानहछू , पार्वतीमंगल , जानकीमंगल , रामाज्ञा प्रश्नावली , बरवै रामायण , बैराग्य संदीपनी और कृष्णगीतावली |
शिवसिंह सरोज में दस और ग्रन्थ भी गिनाये गये है – रामसतसई , संकटमोचन, हनुमदबाहुक रामश्लाघा छंदावली , छप्पयरामायण , कड़खा रामायण , रोलारामायण,झुलना रामायण और कुण्डलिया रामायण |
किन्तु वर्तमान में शुक्ल जी के १२ ग्रन्थ ही सर्वमान्य हैं , उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है | (तुलसी ग्रंथावली से साभार)
१.. दोहावली :-  इसमें ५७३ दोहे हैं जिसमे २३ सोरठे हैं | ये भगवन्नाम महात्म, धर्मोपदेश नीति आदि पर है | इनमे से प्रायः आधे रामायण , रामाज्ञा प्रश्न तथा वैराग्य संदीपनी मई भी मिलते हैं | यह संग्रह संभव है तुलसीदास जी ने स्वयं किया हो या बाद में किसी और ने  | इन दोहों में संसार की अद्भुत बातों तथा गूढ़ तत्वों का  वर्णन किया गया है |
२..कवित्त रामायण या कवितावली  :-  इसमें कवित्त ,घनाक्षरी, सवैये छंद हैं और भाषा शुद्ध ब्रज है इसमें रामचरित, काण्ड क्रम में वर्णित है | यह तो अवश्य खा जा सकता है की ये एक साथ इसी क्रम में नहीं रचे गये हैं , प्रत्युत बाद को इस क्रम में संग्रहीत किये गये हो |
स्वजीवन सम्बन्धी भी कई पद हैं और महामारी से पीड़ित होने पर हनुमान बाहुक भी परिशिस्ट के रूप में रचकर इसमें जोड़ा गया है |
३..गीतावली  :-  गीतावली की रचना तुलसीदास जी ने सूरदास जी के अनुकरण पर की थी बाललीला के कई पद ज्यो के त्यों सूरसागर में भी मिलते है |
यह रचना राग रागनियो में है तथा ३३० छंद है , इसमें कांड क्रम से रामचरित वर्णित है | यह शुद्ध ब्रज भाषा में है | यह कृष्ण भक्त कवियों की शैली पर वैसा ही मनोरम तथा सरल है |
४..श्रीरामचरितमानस :-   हिंदी में सभी द्रष्टियो में सर्वोत्तम इस प्रबन्ध काव्य का प्रारम्भ सम्वत् १६३को अयोध्या में हुआ | सात खंडो(बालकाण्ड,अयोध्याकाण्ड,अरण्यकांड,किष्किन्धाकांड,सुन्दरकाण्ड,लंकाकांड,उत्तरकाण्ड) में रामकथा क विस्तार पूर्वक वर्णन है | वार्णिक व मात्रिक दोनों छंदों का  प्रयोग किया गया है | यह ग्रन्थ अवधि में है तथा विश्व की प्रायः सभी भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है |
५..रामाज्ञा प्रश्नावाली :-   इसमें ४९ दोहे  हैं | तुलसी दास ने इसे शकुन विचारने के लिए बनाया है और इसी बहाने राम चरित्र क वर्णन किया है | इसमें सात सर्ग है और पत्येक सर्ग में सात-सात दोहों के सात-सात सप्तक हैं | इसमें बहुत से दोहे गोस्वामी जी के अन्य  ग्रंथो से लिए गये हैं | सातवे सर्ग के अंतिम सप्तक में सकुन विचारने की विधि भी दी गयी है |

६..विनयपत्रिका  :-   इसमें विनय के ७९ पद हैं | यह गोस्वामी जी की अंतिम रचना ज्ञात होती है | और इसमें इनकी कवित्व शक्ति पूर्ण रूपेण प्रकट हुई है इसमें इनके अगाध पांडित्य शब्दकोश,कव्यकौशल आदि का पूरा परिचय मिलता है | यह पत्रिका प्रार्थना के रूप में सजी गयी है और इतनी हार्दिक आस्था से लिखी गयी है ,की अवश्य ही भगवान् श्रीरामचंद्र जी ने इसे स्वीकार कर लिया होगा |
७..रामललानहछू :-  सोहर  छंद में बीस तुको की यह एक छोटी सी रचना है यह चान पुत्र जन्म,विवाह आदि सभी शुभ अवसरों पे गया जाता है इसे सोहला या सोहलो भी कहते है |
८..पार्वती मंगल  :- इस रचना में शिव पार्वती क विवाह वर्णित है | इसमें सोहर के १४८ तुक व १६ छंद दिए गये है | इसका निर्माण –
                जय संवत फागुन सुदी पाँचे गुरु दिनु |
                अश्विन बिरचेउ मंगल सुनि सुख छिनु छिनु ||
यह जय संवत महामहोपाध्याय  पंडित सुधाकर द्विवेदी के अनुसार सं०१६४३ में पड़ता है | इसकी भाषा शुद्ध पूर्वी अवधी  है |
९..जानकी मंगल  :- इसमें सोहर के १४८ तुक व २४ छंद दिए गये है और पति ८ सोहर पर एक एक छंद है | इसमें सीता राम विवाह क वर्णन है |यह पार्वती मंगल के समय क ही बना ग्रन्थ है और भाषा छंद आदि में सभी में उससे मिलता जुलता है | मानस की कथा से इसमें कुछ भेद किया गया है |
१०..बरवै रामायण  :- यह ६९ बर्वों क एक छोटा सा ग्रन्थ है जो सात अध्यायों में बाँटा गया है , गोस्वामी जी ने इसे ग्रन्थ रूप में निर्मित नहीं किया था एसा स्पष्ट ही ज्ञात होता है | ये यथा रूचि बने हुए बरवे थे जिन्हें स्वयं बाद में गोसाई जी ने या उनके किसी भक्त ने मानस के कांड क्रम में संगृहीत कर दिया है |
११..बैराग्य संदीपनी  :- इसमें  कुल ६५ छंद है | यह  दोहे चौपाइयों में रचित एक छोटी सी रचना है | इसमें तीन प्रकासो में संत स्वभाव , संत महिमा तथा शांति क वर्णन किया गया है |
१२ ..श्रीकृष्ण गीतावली  :- इसमें ६१ पदों में श्रीकृष्ण चरित क वर्णन है इसमें सूरदास के कई पद भी छाप बदलकर मिल गये है | यह किसी क्रम में नही बना है अपितु समय समय पर बने पदों क संग्रह है |
शुक्ल जी ने प्रस्तुत ग्रंथो से सम्बंधित कुछ जनश्रुतियाँ इस प्रकार दी है 14 
                कहते है बरवा रामायण गोस्वामी जी ने अपने मित्र अब्दुर्रहीम खानखाना के कहने पर उनके बरवा (बरवै नायिका भेद ) को देखकर बनाया था |
कृष्ण गीतावली वृन्दावन यात्रा के अवसर पर बनी थी | बेनिमाधावदास  के गुंसाई चरित के अनुसार राम गीतावली व कृष्ण गीतावली चित्रकूट में लिखे गये जब सूरदास उनसे मिलने गये | रामाज्ञा प्रश्न गोस्वामी जी के मित्र गंगाराम ज्योतिषी के अनुरोध पर बना | हनुमानबाहुक  निश्चय ही बाहुपीड़ा के फलस्वरूप बना | विनयपत्रिका के विषय में कहा जाता है कि काशी में रामभक्ति की गहरी धूम के कारण कलिकाल उन्हें प्रत्यक्ष आकर धमकाने लगा , तब उन्होंने राम के दरबार हेतु प्रार्थना पत्र लिखा |

भाषा शैली :-  तुलसी के समकालीन कवि व लेखक ब्रज व अवधी में रचनाये कर  रहे थे | सूरदास जी ने यह ब्रज के चलती भाषा को अपने काव्य क माध्यम बनाया वहीं प्रेममार्गी शाखा के मुसलमान कवियों ने लोकप्रचलित अवधी भाषा चुनी | गोस्वामी जी की दोनों भाषाओं पर सामान पकड़ थी और हो भी क्यों न ? ऐसे कालजयी भक्त कवि भाषओं का प्रयोग नहीं करते अपितु भाषाएँ प्रयोग होने हेतु नतमस्तक रहती हैं | तुलसीदास जी ने दोहे, सोरठे, कवित्त बरवै आदि सभी अपनी रचनाओ में प्रयोग किये हैं | भाषाओं के आधार पर तुलसीदास जी की रचनाओ को दो भागो में लिया जा सकता है |
अवधी -   रामचरितमानस,जानकी मंगल, पार्वती मंगल, बरवै रामायण, रामलला नहछू और रामाज्ञा प्रश्नावली |
 ब्रज  - कवितावली,  गीतावली,विनयपत्रिका,दोहावली,श्रीकृष्ण गीतावली और वैराग्य संदीपनी,

रामचरित मानस की शैली :-  वैसे तो श्रीरामचरित मानस की भाषा अवधी है , किन्तु काव्य के आरम्भ में संस्कृत श्लोको की रचना है | महाकाव्य की प्रथानुसार सर्वप्रथम तुलसी जी ने सरस्वती, गणेश,भवानी व शंकर की वंदना की है पुनः वे गुरु वंदना करते हैं जो शंकर के अवतार हैं, और फिर कवियों के कवीश्वर अर्थात बाल्मीकि , फिर हनुमान तथा राम-सीता की व अंत में राम खलने वाले विष्णु भगवन की | इसमें दोहा, चौपाई, व चाँद क प्रयोग किया गया है |
                        शास्त्रार्थ महारथी श्री पंडित मध्वाचार्य शास्त्री जी ने ‘मानस में प्रयुक्त छन्दों के क्रम का रहस्य ’ नाम से अपने में एक विशेष प्रकार क लेख तुलसी वांग्मय विमर्श में लिखा है उसकी कुछ पंक्तियाँ नीचे दी जा रही हैं |
                        रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने जिन-जिन छन्दों क प्रयोग किया है और उनका जो क्रम रक्खा है ,वह भी निर्हेतुक  नहीं  है | अपितु गूढ़ रहस्य से प्रेरित है |
                        उन्होंने सर्वप्रथम गणपति को नमस्कार करते हुए ‘सोरठ’  छंद क उपन्यास किया है |
                जेहि सुमिरत सिधि होय, गण नायक कविवर बदन |
         करहु  अनुग्रह  सोय, बुद्धि  राशि  शुभ  गुण  सदन ||

उक्त छंद के नामानुसार वे पाठकों को प्रेरणा देते है कि -  ‘सो रट’ अर्थात ‘उस भगवन को रटो’ |
                यह सुनकर स्वभावतः पाठको क प्रश्न होगा की उसको क्यों रटे ? भगवान को रटने से क्या लाभ  होगा ? इसके समाधान हेतु दूसरा छंद ‘चौपाई’ रखा है | यथा-
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा | सुरुचि सुवास सकल अनुरागा || इत्यादि ,सो वे जिज्ञासु को सूचित करते हैं कि भगवन को रटने से ‘चौपाई’ अर्थात धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष नामक चार पदार्थ प्राप्त होंगे |
                        पुनः जिज्ञासा कौन सा नाम जिसे जपने से ये चार पदार्थ प्राप्त होंगे | उत्तर में तीसरा छंद ‘दोहा’ प्रयुक्त हुआ |यथा –
                यथा सुअंजन आँजि दृग, साधक चतुर सुजान |
         कौतुक देखहिं शैल वन, भूतल भूरि  निधान||

उक्त दोहे से गोस्वामी जी सूचित करते हैं कि वह नाम कोई लम्बा चौड़ा कठिन उछारण वाला नही अपितु सीधा साधा ‘दोहा’ अर्थात वह केवल दो ही अक्षर का नाम है ‘रा’ और ‘म’ | यहाँ पूछा जा सकता है गोस्वामी जी महाराज आप सब प्रसंग केवल अपने मन से ही कपोल कल्पित कर रहे है किंवा इसका कोई शास्त्र भी प्रमाण है ? इसके उत्तर में गोस्वामी जी ने क्रम में प्राप्त चौथा छंद, ‘छंद’ नामक ही रखा है, यथा –
                मंगल करनी कलिमल हरनी तुलसी कथा रघुनाथ की |
         गति कूर कविता सरित की ज्यों सरित पावन पाठ की ||
         प्रभु सुजस संगति भणिति भरि होइहि सुजन मन भावनी |
         भवसंत  भूति मसान  की  सुमिरन  सुहावनि  पावनी ||

                        जिसका तात्पर्य है कि भगवन क नाम रटने से चारों पदार्थ मिलते हैं और वह नाम ‘राम’ है | यह बात हमारी मन गढ़ंत नही है | किन्तु इसमें ‘छंद’ अर्थात वेद प्रमाण है
                        इस प्रकार कलि – पावनावतार श्री गोस्वामी जी ने श्रीरामचरितमानस क छंद क्रम भी सहैतुक उपन्यस्त किया है निर्हेतुक नहीं |15
उपरोक्त रहस्य की विस्वसनीयता तो तुलसीदास ही जाने, किन्तु इतना जरूर कह सकते है कि शास्त्रार्थ महारथी जी ने कहीं की ईट व कहीं के रोड़े से कुनबा जरूर तैयार कर लिया |
        यहाँ प्रथम अध्याय समाप्त होता है जिसमे तुलसीदास जी का  जीवन व साहित्यिक परिचय विस्तार पूर्वक हमने जाना | अब चलते है द्वितीय अध्याय की ओर जिसमें नैतिकता के स्वरुप,परिभाषा, नैतिकता का समाज से सम्बन्ध व  साहित्य व नैतिकता के विषय में चर्चा की गयी है |






1.  “कवि अविनाश राय कृत ‘तुलसी प्रकाश’ में लिखित जन्मतिथियों के आधार पर तुलसीदास क जन्म संवत १५६८ विक्रम की श्रावन सप्तमी सुक्रवार को हुआ  x  x  x  x  x  x  x  x  ६३ वें वर्ष श्रीरामचरित क लेखन आरम्भ हुआ”,सुधाकर पाण्डेय,तुलसी वांग्मय विमर्श,पृष्ठ ४५
2.  तुलसी वांग्मय विमर्श,पृष्ठ २ |
3.  आचार्य रामचंद्र शुक्ल,हिंदी साहित्य का इतिहास,पृष्ठ ९५ |
4.  डाक्टर मानवेन्द्र पाठक,प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य मंजूषा, पृष्ठ ५४ |
5.  तुलसी वांग्मय विमर्श,पृष्ठ ३ |
6.  डाक्टर नगेन्द्र, हिंदी साहित्य का इतिहास,पृष्ठ १७६ |
7.  तुलसी वांग्मय विमर्श,पृष्ठ ४
8.  डाक्टर नगेन्द्र, हिंदी साहित्य का इतिहास,पृष्ठ १७६ |
9.  कवितावली उत्तरकाण्ड, पृष्ठ १०७ |
10.                 तुलसी वांग्मय विमर्श,पृष्ठ १० |
11.                निराला और उनका तुलसीदास – टीका (छंद ९९ ), पृष्ठ १०७ |
12.                सी० बांदीवाल,तुलसीदास कृत रामचरितमानस व उनकी रचना, तुलसी ग्रंथावली पृष्ठ १५० |

13.  आचार्य रामचंद्र शुक्ल,हिंदी साहित्य का इतिहास,पृष्ठ १०६  |